दो हजार वर्षों के अंतराल बाद पुरोला में हो रहे महायज्ञ में उमड़ रही है श्रद्धालुओं की भारी भीड़ । प्रथमशदी कुलिंद राजवंश के शासनकाल मे कमल गंगा के तट पर हुआ था महायज्ञ । 35 वर्ष पूर्व उत्खलित विश्व की सबसे बड़ी गरुडाकार यज्ञवेदिका पुरोला के प्राचीनकाल से ही धर्म व अध्यात्म नगरी होने का प्रमाण । व्यासपीठ पर विराजमान मुख्य व्यास आचार्य शिव प्रसाद नोटियाल सहित 28 व्यास व 51 विद्वान ब्राह्मण 18 पुराणों, 4 वेदों के मूल पाठ व यज्ञ-तप से कर रहे भारत की समृद्धि व विश्व शांति की मनोकामना

 गजेन्द्र सिंह चौहान, पुरोला

धर्म व आद्यात्म नगरी पुरोला के नवनिर्मित कुमदेश्वर नागराज मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा के उपरान्त अष्टादस महापुराण यज्ञ का आयोजन चल रहा है । 4 जून से 14 जून तक  क्षेत्राधिपति ओडारु- जखन्डी महाराज के सानिध्य में शुरू हुये महायज्ञ में बतौर मुख्य अतिथि मुलुकपति राजा रघुनाथ सहित कलीग नाग, शिकारू नाग, कपिलमुनि -खण्डासुरी महाराज, सोमेश्वर महाराज, भीमाकाली,राज राजेश्वरी, यमुना मैया व भद्रकाली यज्ञ में विराजमान रहकर श्रद्धालुओं को दर्शन देकर धन्य कर रहे हैं । व्यासपीठ पर विराजमान मुख्य व्यास आचार्य शिव प्रसाद नोटियाल सहित 28 व्यास व 51 ब्राह्मण 18 पुराणों, 4 बेदो सहित दुर्गा सप्तशती , विभिन्न जप , तप व यज्ञ कर रहे हैं ।


विदित हो कि कमल नदी के तट पर विश्व की सबसे बड़ी उत्खनित गरुडाकार यज्ञ वेदिका इस बात की साक्षी है कि पुरोला प्राचीन काल से तप व यज्ञस्थली रही है । पुरातत्वविदों के मुताबिक उत्खलित यज्ञवेदिका प्रथमशदी में कुलिंद शासन काल की बनी है । प्रथमशदी  में हुये महायज्ञ की साक्षी यज्ञ वेदिका 2000 साल बाद भी गवाह हैं कि पुरोला प्राचीन काल से ही धर्म अध्यात्म व संस्कृति का केंद्र रही है । प्रथमशदी के बाद भारत मे आतताइयों के हमलों व देश के विभिन्न जनपदों में बंटने के कारण कमजोर राजवंशो के शासन की वजह से फिर कोई महायज्ञ न हो सका ।


 देश मे आतताइयों के हमलों व कमजोर राजवंशो की वजह से फिर कोई महायज्ञ भले ही नही हो सका पर स्थानीय नागरिकों व पुरातत्वविदों ने नाजराज मंदिर परिसर का जलकुंड व कमल नदी के तट पर स्तिथ विश्व की सबसे बड़ी यज्ञ वेदिका को उत्खलित कर दो हजार वर्ष बाद एक बार फिर महायज्ञ की पटकथा लिख दी । यज्ञवेदिका व जलकुंड के उत्खनन के 35 वर्ष बाद एक बार फिर पुरोला में महायज्ञ का आयोजन होने से चारो तरफ हर्षोल्लास है । महायज्ञ इस बात का भी प्रतीक है कि भारत एक बार फिर विश्व की महाशक्ति बन गया है , ओर भारत की पताका विश्वभर में धर्म, अध्यात्म, विज्ञान, ज्ञान, टेक्नोलॉजी व सैन्यशक्ति के रूप में फैल रही है ।

 महायज्ञ के चतुर्थ दिन कथा का प्रारंभ करते  हुए मुख्य व्यास आचार्य शिव प्रसाद नोटियाल ने कहा कि स्कंद पुराण के केदारखंड में पुरोला के ताज केदारकांठा पर्वत का वर्णन है, जिसमें केदारकांठा को आदि केदार बताया गया है । उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हरिद्वार से केदारनाथ व बद्रीनाथ को पैदल मार्ग जाता था उसी प्रकार पुरोला से आदि केदार यानी केदारकांठा को पैदल मार्ग जाता था । धर्म व आद्यात्म में जो महत्व हरिद्वार का है वही महत्व पुरोला का है । 

 अष्टादस महापुराण में मुख्य व्यास के अतिरिक्त आचार्य लोकेश बड़ोनी ( मधुरजी) ,  दयाराम उनियाल, मेवाराम गैरोला, बृजेश नोटियाल, सुदामा गैरोला, मनोज सेमवाल, विनोद नोटियाल, मनोज सेमवाल, जयंती प्रसाद सेमवाल, मार्कण्डेय प्रसाद सेमवाल, शक्ति प्रसाद सेमवाल सहित 28 विद्वान 18 पुराणों व 4 वेदों का मूलपाठ कर रहे हैं ।

इसके अलावा क्षेत्र  की 365 थातियो के पुजारी पंडित हरिकृष्ण उनियाल सहित  51 ब्राह्मण वेद मंत्रों का जप, तप व यज्ञ कर रहे हैं । इस अवसर पर यज्ञ व मन्दिर समिति के बृजमोहन सजवाण, उपेन्द्र असवाल, नगर पंचायत अध्यक्ष हरिमोहन नेगी, बद्रीप्रसाद नोडियाल, जयबीर रावत नाजराज, ओपी नोडियाल, राजेन्द्र गैरोला, नवीन गैरोला, बरदेब नेगी, बिपिन रावत व बलदेव नेगी आदि मौजूद रहे ।




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