पुरोला की राजनीति में राजेश जुवांठा की जोरदार वापसी । युवाओं की पसंद बने जुवांठा ने कर्ण महाराज व पोखु महाराज के दर्शन कर लिया आशीर्वाद ।

 नमोन्यूज एक्सक्लुसिव / गजेन्द्र सिंह चौहान


 पुरोला की राजनीति में राजेश जुवांठा ने जबरदस्त वापसी की है , उन्हें युवाओं का जबरदस्त समर्थन मिल रहा है । इसी उत्साहित  युवा टीम के साथ उन्होंने कल मोरी विकास खण्ड के देवरा गांव में कर्ण महाराज के दर्शन किये उन्होंने नैटवाड़ में पोखु महाराज के भी दर्शन किये ।


इष्टदेवताओ के दर्शन करने के बाद जुवांठा ने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहा कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में जनता के आशीर्वाद से चुनाव लड़ेंगे । उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता सर्बोच्च होती है ओर इष्टदेवताओ के दर्शन करने के बाद मैं जनता जनार्दन को विश्वास दिलाता हूं कि मैं उनकी अपेक्षाओ पर खरा उत्तरूँगा ।


इस अवसर पर उनके साथ नीरज राणा, कुलदीप चौहान, पूर्व बीडीसी उपेन्द्र वर्मा,  विकास हिमानी, पंचराम चौहान, सतेंद्र चौहान, दीपक हिमानी, सोबत सिंह राणा, सुखदेव असवाल, सुरेश कुमार व विशन रावत आदि उपस्थित रहे ।




मालचंद को चुनौती देने में राजेश जुवांठा समर्थकों की विफलता की वजह खुद जुवांठा । उत्साह से लबरेज समर्थकों के बावजूद निष्क्रिय जुवांठा से मालचंद को खतरा नही मानते मालचंद समर्थक । 

गजेन्द्र सिंह चौहान पुरोला 15 नवम्बर 2021

राजनीतिक सहमात के खेल में पुरोला की राजनीति में उत्तराखंड बनने से ही मालचंद का बोलबाला रहा है । राज्य में हुए प्रथम विधानसभा चुनाव में उन्होंने पूर्व पर्वतीय विकास मंत्री व विकास पुरूष के नाम से जाने जाने वाले स्वर्गीय बर्फियां लाल जुवांठा की धर्मपत्नी शांति जुवांठा को सीधी टक्कर में मात देकर पुरोला का प्रतिनिधित्व किया था ।

किंतु 5 साल की विधायकी में जनता का उनसे मोहभंग होने लगा व उनके विरोधियों ने इस बार शांति जुवांठा के स्थान पर उनके पुत्र राजेश जुवांठा पर दांव लगाया व राजेश जुवांठा पुरोला के विधायक बने । 5 साल के कार्यकाल में उन्होंने भी कोई उल्लेखनीय कार्य नही किये व उनसे जनता का मोहभंग इस कदर हुआ कि 2012 के विधानसभा चुनाव में वे बुरी तरह पराजित हो गये ।

पराजय के बाद भी संभलने को तैयार नही हुये जुवांठा 

2012 के चुनाव में मिली बड़ी पराजय के बाद जुवांठा से संभलने की उम्मीद कर रहा था पर जुवांठा सबकी उम्मीदों पर पानी फेरते रहे । वे महीने में यदा कदा अपने देहरादून के आवासों से पुरोला भ्रमण को आते जाते रहे पर जनता से लगातार दूरी बनाए रखी । जुवांठा पुरोला स्तिथि अपने आवास के आसपास यदा कदा ही संपर्क करते थे । इस सबसे जुवांठा को समर्पित कार्यकर्ताओ का उत्साह कभी कम नही हुआ व जब भी जुवांठा अपने पुरोला स्तिथ आवास पर पहुंचते कार्यकर्ताओ का हुजूम उन्हें जोश में लाने को पहुंचता रहा पर जुवांठा गांव गांव जाकर जनसंपर्क करने को हामी भरते व अगले दिन खास काम की वजह से देहरादून को रवाना होते रहे ।

यो ही कट जाता है सफर साथ चलने से मंजिल आ ही जाएगी

जुवांठा ने पांच साल का सफर यो ही काट दिया, जुवांठा को उम्मीद थी कि कांग्रेस पार्टी एक बार फिर उन्हें टिकट देगी ओर वे उसके बाद सक्रिय होकर जनता के बीच जाकर वोट मांगेगे । जुवांठा इस बात के लिए हमेशा आत्मविश्वास में रहे कि  उन्हें टिकट मिलेगा व टिकट मिलने के बाद वे सक्रिय होकर ईमानदारी के नामपर जनता के बीच जाकर वोट मांगेंगे । चुनाव नजदीक थे व कार्यकर्ता लगातार उन्हें जनसंपर्क के लिए लगातार मनाती रहे पर उन्होंने कार्यकर्ताओ के अपेक्षा अपने दिल की सुनी ओर वे टिकट का इंतजार करने लगे । ओर इस तरह 2017 के चुनाव की वो घड़ी आ गई जिसमें टिकट बंटना था ।

अंत मे हुआ वही जिसका डर था पार्टी हाईकमान ने अंतिम छणों में बीजेपी के टिकट से वंचित राजकुमार को टिकट दिया व जुवांठा इसे हरीश रावत की उनसे कोई जाति दुश्मनी मान बैठे ।

खैर टिकट कटने से निराश जुवांठा को उस समय निर्दलीय चुनाव लड़ रहे दुर्गेश लाल के साथ गये उनके समर्थकों का सहारा मिला व उन्होंने डामटा में जुवांठा का स्वागत करते हुए उनके समर्थन में डामटा से पुरोला तक बड़ी रैली निकाली । खैर राजेश के समर्थन में निकली रैली को देहरादून व दिल्ली में बैठे नेताओं ने देखा व उन्हें लगा कि राजेश को अपने खेमे में बनाना लाभप्रद होगा । खैर कुछ लोग उन्हें कांग्रेस में बनाये रखने के लिए जीजान से लग गये व कुछ लोग बीजेपी में ले जाने के लिए । खैर शायद उन्हें किसी नेता ने 2022 का टिकट देने का आश्वासन दिया ओर वे बीजेपी में शामिल हो गये ।

बीजेपी में जाने पर कुछ दिन सक्रिय रहे जुवांठा

खैर बीजेपी में जाने पर उन्होंने मालचंद का प्रचार किया वे हर गांव में चुनाव प्रचार मालचंद के साथ ही करते थे व उन्हें अब शायद राजनीति में सक्रिय रहने का मतलब समझ आ गया था । खैर उनके बीजेपी में आने से मालचंद को उनके समर्थक अधिकांस कार्यकर्ताओ का समर्थन मिला व उनके गांव कुमोला से भी मालचंद को बढ़त मिली ।

खैर मालचंद मामूली अंतर से चुनाव हार गये व राजकुमार पुरोला के विधायक बने । इसके बाद कुछ दिन राजेश राजनीति में सक्रिय रहे व अन्य राज्यों के चुनाव में भी बीजेपी के विधानसभा प्रभारी बने ।

खैर मालचंद के साथ जाने से उनके कुछ कार्यकर्ता भी स्थाई रूप से मालचंद के साथ हो गये व राजेश फिर से निष्क्रिय हो गये । खैर राजेश के पास फिर भी कार्यकर्ताओ की कमी नही रही ओर उनके समर्थन में ऐसे लोग आने लगे जो मालचंद व राजकुमार को पसंद नहीं करते ।

लेकिन राजेश को मिल रहे कार्यकर्ताओ के समर्थन के बावजूद खबर लिखे जाने तक उन्होंने जनसंपर्क अभियान में तेजी नही लाई है । जनसंपर्क अभियान में तेजी न लाने के पीछे शायद उनका ये मानना है कि पुरोला विधानसभा में टिकट ही सबकुछ होता है व टिकट ही जीत की गारंटी है पर शायद उन्हें ये नही लगता कि टिकट जनता के बीच सक्रिय होकर मिलता है ।

खैर विधानसभा चुनाव में वक्त कम ही रह गया व मालचंद को अभी तक राजेश से चुनौती नही मिल पाई हैं ।





 मालचंद की लोकप्रियता पर भारी पड़ सकता हैं राजकुमार का विजन । पुरोला जिले को बनाने को लेकर हर मंच का स्तेमाल कर रहे है राजकुमार । बेष्टि से रामाबेंड को जोड़ने के लिए मोटर मार्ग , अस्पतालों के उच्चीकरण जैसे घोषणाओं के अमल में आने पर हो सकता है सकता है लोकप्रियता में उतार चढ़ाव

 गजेन्द्र सिंह चौहान पुरोला / 14 नवम्बर 2021


 पूर्व विधायक मालचंद व निवर्तमान विधायक राजकुमार के बीच वर्ष 2012 से ही राजनीतिक सह मात का खेल चल रहा है । सहसपुर के विधायक रहते हुए राजकुमार ने पुरोला विधानसभा में सक्रियता बढ़ाई व यहाँ के लोगो की मुख्यमंत्री राहत कोष सहित अन्य तरीकों से मदद कर पुरोला विधानसभा के लोगों में खुद के लिए जगह बना ली ।

अपने कार्यो व क्षेत्र में सक्रियता की वजह से उन्होंने वर्ष 2012 में बीजेपी से टिकट मांगा लेकिन पार्टी का टिकट मालचंद को मिला । टिकट न मिलने से राजकुमार के इरादे कमजोर नही हुए ओर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़कर मालचंद को कड़ी टक्कर दी । राजकुमार द्वारा कड़ी टक्कर मिलने के बावजूद मालचंद विजयी हुये व राजकुमार को पराजय का मुंह देखना पड़ा ।
विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद राजकुमार की सक्रियता में कोई कमी नही आई ओर उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती गई । इस बीच उन्होंने कांग्रेस व बीजेपी में कुछ काल के लिए दलबदल भी किया बावजूद वे पार्टी संगठन व संघ कार्यकर्ताओ के चहेते बन गये ।

पार्टी संगठन में मजबूत पकड़ व संघ कार्यकर्ताओ का व्यापक समर्थन मिलने के बावजूद वे 2017 के चुनाव में पार्टी का टिकट पाने में नाकामयाब रहे व राजनीतिक सह मात के खेल में वे मालचंद से एक बार फिर हार गये ।
टिकट न मिलने से राजकुमार ने हार नही मानी व बीजेपी पदाधिकारियो से मिल रहे व्यापक समर्थन से उत्साहित होकर उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली व कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उत्तर गये ।
 चुनावी समर में मालचंद व राजकुमार के बीच कड़ी टक्कर होनी लाजिमी थी पर पार्टी संगठन के अधिकांश पदाधिकारी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से राजकुमार को समर्थन दे रहे थे । 2017 का विधानसभा चुनाव इसलिए भी ऐतिहासिक बना क्योंकि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी पूरे देश मे घूम घूमकर संघ को आतंकवादी संगठन बता रहे थे बावजूद पुरोला में संघ के अधिकांश कार्यकर्ता कांग्रेस को वोट दे रहे थे ।
खैर आखिरकार बीजेपी संगठन के अधिकांश पदाधिकारियो, संघ कार्यकर्ताओ व कांग्रेस के मजबूत वोट बैंक के दमपर राजकुमार को पुरोला का विधायक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।

असली मुद्दा मालचंद की लोकप्रियता व राजकुमार का विजन


विधानसभा में हार के बावजूद मालचंद की लोकप्रियता में कमी नही आई कारण था राजकुमार ने सुरुवात में विधायक निधि का सदुपयोग करते हुए कुछ विधालयो में फर्नीचर व निर्माण कार्य कराये , जिससे जनता को लगने लगा कि राजकुमार के रूप में पुरोला की एकदम सही प्रतिनिधि मिला । पर जनता की ये खुसी जादा दिन नही रही व धरातल से विधायक निधि गायब होकर महज कागजी शेर बन गये ।
इस तरह साढ़े चार साल के कार्यकाल में राजकुमार अपने विजन पर प्रत्यक्ष रूप से ठोस कार्यं नही कर सके । ऐसा नही की पुरोला विधानसभा में कार्य नही हुये , उनके कार्यकाल में पुरोला विधानसभा के अंतर्गत 14 से अधिक पुलों का निर्माण हुआ जिनमेसे कुछ पूर्ण हो गये व कुछ गतिमान है ।
 इसके अलावा कई गांव सड़क मार्ग से जुड़े व डामरीकरण ने भी रिकार्ड तोड़े । यही नही उन्होंने जिला प्लान का सदुपयोग करते हुए उसे सिंचाई नहरों के लिए आवंटित किया ।
अब असल मुद्दा राजकुमार का विजन कैसे मालचंद की लोकप्रियता पर भारी पड़ सकता है पर बात करे तो साढ़े चार साल विपक्ष में रहते हुए उन्होंने ये सबक सिखा की विधायकी तो फिर भी मिल जाएगी पर पुरोला की जनता से किये गए वादे पूरे करने जरूर है । फलस्वरूप राजकुमार ने दिल्ली में बीजेपी के बरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में कांग्रेस छोड़ भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली ।
जिसका नतीजा जल्दी ही सामने आया व उनके आमंत्रण पर मुख्यमंत्री का भ्रमण कार्यक्रम बना व नौगांव में मुख्यमंत्री ने जनसभा को संबोधित किया । इस दौरान मुख्यमंत्री ने कृषि मंडी व कोल्ड स्टोरेज का शिलान्यास किया व जनसभा को संबोधित करते हुए अनेकों घोषणाएं की । मुख्यमंत्री द्वारा करोड़ो की घोषणाओं को किये जाने से जनता में भारी नाराजगी पैदा हो गई क्योंकि जनता में ये सर्वविदित है कि उक्त घोषणाओं को सिर्फ 5 -7  व्यक्तियों को करोड़ों रुपये के निजी फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है । विदित हो कि मुख्यमंत्री की घोषणाओं में छफुटियो तक कि घोषणाओं तक कि गई है व ये भी सर्वविदित है कि उक्त कार्य भी कागजो पर होने हैं क्योंकि पुरोला विधानसभा के अंतर्गत विगत के वर्षों में विभिन्न विभागों ने अरबो रुपये के कार्य कागजो पर होते आये हैं ।
खैर असल मुद्दा तो राजकुमार का विजन है , उनके विजन में पुरोला में मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि अनुसंधान केन्द्र व अस्पतालों के उच्चीकरण सहित पुरोला गून्दियाटगाँव मार्ग को मोरी रोड से जोड़ना था पर इन सबपर विपक्ष में रहते हुए कार्य असमभव देख उन्होंने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की ।
खैर नौगांव में मुख्यमंत्री द्वारा ठोस घोषणाओं को नही किया गया व मुख्यमंत्री का एक बार नया कार्यक्रम बनाया गया , जिसमें मुख्यमंत्री ने रामा सेरांई के प्रमुख केन्द्र गून्दियाटगाँव में आकर जनता के हित मे ठोस घोषणाओं को करना था पर कतिपय कारणों से अभी उक्त कार्यक्रम तय नही हुआ ।
राजकुमार हर मंच पर यही बात कर रहे हैं कि उन्होंने बीजेपी में आते ही मुख्यमंत्री का भ्रमण कार्यक्रम बनाया व एकबार फिर मुख्यमंत्री गून्दियाटगाँव में आयेंगे व यहाँ के विकास के लिए अनेको घोषणाएं करेंगे । पर आजतक अन्य नेताओं ने क्यों नही मुख्यमंत्री को बुलाया है । वे हमेशा जोरदेकर कहते हैं कि मुझे एक मौका ओर दो ताकि अधूरे कार्यो को पूरा कर संकु ।
राजकुमार का एक अन्य बात पर विशेष जोर होता है ओर वो है विधानसभा में पुरोला को जिला बनाने की मांग करना ।

निसंदेह राजकुमार के पास विजन हैं पर उसपर काम होगा तभी उनकी लोकप्रियता में इजाफा होगा व मालचंद की लोकप्रियता पर वे भारी पड़ेंगे ।


 मालचंद के खिलाफ भाजपा संगठन या संगठन के खिलाफ मालचंद । देखिये पुरोला विधानसभा में राजनीतिक सहमात पर नमोन्यूज की खास रिपोर्ट

 गजेन्द्र सिंह चौहान पुरोला 13 नवम्बर 2021

राजनीति सह ओर मात का खेल है , राजनीतिक में अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के नितांत नये मोहरे चलने पड़ते हैं । कभी लगता है सही मोहरा चल गया तो कभी लगता है मोहरा गलत । इतना जरूरी है कि राजनीतिक विसात में आम जनता सिर्फ दर्शक की भूमिका में होती है व उन्हें सिर्फ एक बार वोट डालना है उसके बाद उन्हें प्रतिनिधि से प्रोटोकॉल के तहत ही मिलना पड़ता है ।
इसी राजनीति के विसात पर आइये चर्चा करते हैं पुरोला के पूर्व विधायक मालचंद की । दो बार पुरोला के विधायक रह चुके मालचंद राज्य में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर विधायक बने । कड़े मुकाबले में उन्होंने पूर्व पर्वतीय विकास मंत्री व विकास पुरूष स्वर्गीय बीएल जुवांठा की धर्मपत्नी शांति जुवांठा को हराकर पुरोला का प्रतिनिधित्व किया । पांच साल के कार्यकाल में उनपर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के  मुख्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी से सांठगांठ के आरोप लगते रहे । पर मालचंद अपने एजेंडे से पीछे नही हटे व उन्होंने मुख्यमंत्री से सम्बंध बनाये रखे । 
मुख्यमंत्री से नजदीकियों की वजह से वे पार्टी संगठन की नजरों में सदैव चुभते रहे जिसका परिणाम 2007 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला । मालचंद का टिकट काटकर अमृत नागर को दिया गया जिसके परिणाम स्वरूप मालचंद मामूली मतों से चुनाव हार गये । पर नागर कोई कमाल नही दिखा पाए व पार्टी संगठन को अपने निर्णय पर पछताना पड़ा । नागर इस चुनाव में कोई कमाल नही दिखा पाये व उन्हें उम्मीद से कम वोट पड़े ।
खैर पार्टी संगठन के पास मालचंद का कोई तोड़ नही था इसलिए नापसंदी के बावजूद अगली बार यानी 2012 में मजबूर होकर फिर उन्हें टिकट दीया गया ओर वे फिर चुनाव जीत गये ।
चुनाव तो जीत गये पर  सरकार कांग्रेस की बनी व मालचंद ने अपने पूर्व के अनुभव का स्तेमाल करते हुए कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री हरीश रावत से मधुर संबंध बना लिए ।
इस बार उनसे जिला व राज्य स्तरीय पार्टी संगठन की नाराजगी पहले से ही जगजाहिर होती गई  साथ ही स्थानीय विधालयों में कार्यरत कुछ आचार्य गण व संघ कार्यकर्ता भी उनके खिलाफ होते गये । 
शेष अगले अंक में 

 


मालचंद के अगले कदम पर टिकी हैं सबकी नजर, राजेश का दावा टिकट उन्हें ही मिलेगा । अभी तक बाजी राजकुमार के हाथ मे या दुर्गेश की बन रही हैं संभावनाएं । 

12 नवम्बर पुरोला

 चुनाव पूर्व सर्वेक्षण पर नमोन्यूज की खास रिपोर्ट / गजेन्द्र सिंह चौहान पुरोला 

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लिए अब समय कम रह गया है व संभावित प्रत्याशी अपनी अपनी तैयारियों के साथ दलबदल को भी हथियार बना रहे हैं । वही जनता भी दिनभर राजनीतिक संभावनाओं पर चर्चा करते रहते हैं । पुरोला में भी लोगो के बीच बहस का होना लाजिमी है । अब तक के चार कार्यकाल में  3 विधायक दे चुकी पुरोला की जनता ने सत्ता का स्वाद नही चका है , जिसका दुष्परिणाम यहाँ की जनता को आधुनिक विकास से दूर रहकर भुगतना पड़ रहा है । यहाँ से हमेशा विपक्ष का व्यक्ति ही विधायक बनता आ रहा है ।


विकास के नाम पर यहाँ सक्रिय चन्द दलालों की पों बारह हो रही है, इन दलालों की अधिकारियों के साथ मिलीभगत का परिणाम है कि यहाँ अरबो रुपये की कागजी योजनाओं को डकारा जा रहा है । भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलकर दलाल यहां के जंगलों में अश्वमार्गो का कागजी निर्माण व छफुटियो का निर्माण कराते हैं ।

मुख्यमंत्री के विधानसभा भ्रमण पर भी दलालों की चली

   विपक्ष का विधायक होने का दंश  भुगत रही पुरोला की जनता को इस बार भी विकास से दूर रहे कारण था विपक्ष का विधायक उस पर टीएसआर यानी त्रीरिवेंद्र सिंह रावत के रूप मेंं चार साल तक सम्पूर्ण उत्तराखंड की जनता को ऐसे  व्यक्ति को मुख्यमंत्री के रूप में  झेलना पड़ा जो खूदको जनता के प्रति नही 


अपितु पार्टी हाईकमान के प्रति उत्तरदायी समझते रहे इसलिए चार साल के कार्यकाल में न उन्होंने न जनता की परवाह की ओर न ही पार्टी के विधायकों की । जब विकास पटरी से उत्तर गया व जनता के बीच विरोध चरम पर पहुंच गया व विधानसभा चुनाव को नजदीक आते देख अन्ततः हाईकमान को अपने चहेते को मुख्यमंत्री पद से उतारना पड़ा।

बात पुरोला विधानसभा में विपक्ष यानी कांग्रेस विधायक राजकुमार की हो रही है, उन्होंने चुनाव प्रचार के समय जनता से वादा किया था कि अगर जनता उन्हें विधायक बनाती है तो वे कागज पर चल रही अरबो रुपये की योजनाओं को जो सिर्फ चन्द दलालों व भ्रस्ट अधिकारियो की जेबो में जा रही है के स्थान पर मेडिकल कॉलेज, इंजिनीरिंग कॉलेज, कृषि व बागवानी सहित यहां के अस्पतालों के उच्चीकरण को प्राथमिकता देंगे । दुर्भाग्यवस त्रिवेंद्र रावत के रूप में राज्य को मिला मुख्यमंत्री व उनका विपक्ष के होने के साथ साथ बीमारी से झूझने की वजह से इस संबंध में कोई ठोस कार्य न हो सका ।

जनता के बीच किये गये वादों पर खुद को खरा न उत्तरपाने से निराश राजकुमार को एक उम्मीद जगी जब बीजेपी हाईकमान ने जनता के दबाव के आगे पहले त्रिवेंद्र रावत व फिर तीरथ सिंह के स्थान पर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया  । पुष्कर सिंह धामी जैसे ऊर्जावान व्यक्ति के मुख्यमंत्री बनने से राजकुमार को उम्मीदे जगी व विकास के खातिर विधायकी को दांव पर लगाते हुए उन्होंने दिल्ली में बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली ।

जिसका असर तुरंत देखने को मिला व पहली नवम्बर को नौगांव में मुख्यमंत्री के भ्रमण का कार्यक्रम बना जिसमें नौगांव में कृषि मंडी व आराकोट में कोल्ड स्टोरेज का शिलान्यास किया गया ।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा नौगांव इंटर कॉलेज में जनसभा को संबोधित किया गया लेकिन यहाँ भी दलालों की चली व राजकुमार मुख्यमंत्री को क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि एवम बागवानी कॉलेज , नौगांव एवम पुरोला के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों के उच्चीकरण सहित पुरोला के लिए बाईपास व बेष्टि से रामाबेंड को मोटर मार्ग से जोड़ने वाली जैसी योजनाओं के संबंध में मांगपत्र ही नही दे सके । जिसकारण मंच से मुख्यमंत्री ने जन भावनाओं के विपरीत छफुटियो तक कि घोषणाये कर दी । जिसका जनता के बीच खूब विरोध हो रहा है , जनता का कहना है कि इस तरह की घोषणाओं की मुख्यमंत्री से अपेक्षा नही थी , ऐसी योजनाओं को तो ग्राम पंचायत की खुली बैठक में मनरेगा के माध्यम से कराया जा सकता था ।

विधायक राजकुमार ने हार नही मानी व मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का पुनः क्षेत्र  भ्रमण का कार्यक्रम बनाया है , इसबार कार्यक्रम स्थल नौगांव की अपेक्षा गून्दियाटगाँव होगा व सभी जनहितैषी योजनाओं को मांगपत्र में शामिल करने के साथ साथ पुरोला को जिला बनाने की भी मांग की जायेगी ।

पूर्व विधायक मालचंद से पहले दुर्गेश लाल का ये कदम भी चर्चा का विषय बना

खैर राजकुमार ने विकास की खातिर कॉंग्रेस को छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया । लेकिन उससे बीजेपी में पहले से ही मौजूद दो पूर्व विधायकों व 2017 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके दुर्गेश लाल को राजकुमार का बीजेपी में आना असहज कर गया । असहज होने की सबसे बड़ी वजह थी कि बीजेपी में शामिल होने की खुशी में राजकुमार का डामटा से लेकर पुरोला तक बीजेपी कार्यकर्ताओं ने भव्य स्वागत किया । स्वागत कार्यक्रम में में पूर्व विधायक मालचंद व दुर्गेश समर्थक तमाम बीजेपी कार्यकर्ताओं राजकुमार का जोरदार स्वागत करते हुए उनके समर्थन में खूब नारे लगाए ।


 खैर 2017 में धमाल मचाने के बाद दुर्गेश बीजेपी के लोकलुभावन नारो के भंवर जाल में फंस गए व अपने समर्थकों का ख्याल किये बिना चन्द समर्थकों सहित बीजेपी में शामिल हो गये । उसके बाद दुर्गेश लगातार बीजेपी के कार्यक्रमो में हिस्सा लेते रहे व पार्टी की रीति व नीति के प्रति बफादार बने रहे । लेकिन बीजेपी के द्वारा दिये गये लॉलीपॉप से अन्ततः दुर्गेश लाल का मोहभंग हो गया व उन्होंने 9 नवम्बर को राज्य स्थापना दिवस पर कांग्रेस में जाने का फैसला कर लिया पर किसी वजह से उनकी उस दिन कांग्रेस में जोइनिंग नही हो पाई , खैर अटकलो को विराम लगाते हुए अगले दिन यानी 10 नवम्बर को उन्होंने देहरादून में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली ।

पूर्व विधायक मालचंद से पूर्व एक ओर पूर्व विधायक राजेश जुवांठा की चर्चा जरूरी है

राजेश जुवांठा पूर्व पर्वतीय विकास मंत्री व विकास पुरूष स्वर्गीय बीएल जुवांठा के ज्येष्ठ पुत्र है , जनता ने उनमें उनके पिता की छवि देखी व उन्हें विधायक बना दिया खैर राजेश जुवांठा ऐसे व्यक्ति है जिनके बारे में ईमानदारी से कहे तो वे ऐसे व्यक्ति है जिनसे जनता का मोहभंग नही हुआ अपितु ये कहे कि जनता से उनका मोहभंग हो रखा है । ये बात बिल्कुल सत्य है राजेश जुवांठा के बारे में यही कहा जाता है कि वे  जनता से दूरी बनाकर रखते हैं व अपने विकासनगर आवास से जब भी पुरोला आते हैं तो बिना जनसंपर्क किये विकासनगर को प्रस्थान कर देते हैं ।


खैर पहली बार कांग्रेस के टिकट पर मालचंद को हराकर राजेश विधायक बने व दूसरी बार पुनः मालचंद उनको हराकर चुनाव जीते लेकिन तीसरी बार कांग्रेस ने उन्हें टिकट नही दिया व वे कांग्रेस छोड़ बीजेपी में सामिल हो गये व मालचंद को समर्थन करते हुए उनके लिए खूब प्रचार किया ।

खैर तबसे वे बीजेपी में हैं ओर कल ही पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाऊस पुरोला में कार्यकर्ताओं संग बैठक कर उन्होंने चुनाव लड़ने का ऐलान किया है ।

खैर इन सबके बावजूद जनता के बीच राजेश जुवांठा की छवि एक ईमानदार नेता की है । जनता उनके बारे में डफर व ठग जैसे शब्दों का स्तेमाल गलती से भी नही करती है । उनके बारे में विधायक निधि से कमीशन खाने की बात नही सुनी जाती है । कुल मिलाकर जनता के बीच मे वे लोकप्रिय है व उन्हें इस लोकप्रियता को भुनाने के लिए अच्छे सलाहकारों की आवश्यकता है ।

पूर्व विधायक मालचंद पर सबकी नजर वे बीजेपी में ही रहेंगे या कांग्रेस में जायेंगे । खैर पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी का टिकट मिलने के बावजूद, अधिकतर बीजेपी पदाधिकारियो व संघ कार्यकार्ता जो शायद 70 के लगभग रहे होंगे ने मिलकर उनके खिलाफ कार्य किया ।  जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें मामूली अंतर से हार का सामाना करना पड़ा ।

खैर पूर्व विधायक मालचंद का अगला कदम क्या होगा इस पर अगले एपिसोड में हम फूल स्टोरी के साथ जल्दी ही पुन्ह हाजिर होंगे 

डिस्क्लेमर : उपरोक्त लिखे गए सभी तथ्य सामान्य बातचीत के आधार पर है, पोस्ट का उद्देश्य न किसी का प्रचार करना है ओर न किसी  महिमामंडन


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