गजेन्द्र सिंह चौहान, पुरोला
एक तरफ आगामी निकाय चुनाव की घोषणा कभी भी हो सकती है तो दूसरी तरफ सीटो का आरक्षण तय न होने से कोई भी व्यक्ति अभी इष्टपस्ट रूप से अपनी उम्मीदवारी नही जता पा रहा है । पब्लिक ओपिनियन के आधार पर नगर पालिका चुनाव में सामान्य श्रेणी में पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष हरिमोहन नेगी व विगत चुनाव में उनसे मामूली अंतर से हारे उपेन्द्र असवाल जिन्हें पूरा नगर राधे- राधे नाम से जानता है के बीच फिर से मुकाबला होगा । वही आरक्षित एससी श्रेणी में पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष पीएल हिमानी व कांग्रेस नेता बिहारी लाल शाह दो मुख्य चेहरे है जिनके बीच कड़ा मुकाबला होने की सम्भावना है ।
आइये सबसे पहले चर्चा करते हैं पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष हरिमोहन नेगी की । हरिमोहन नेगी का नगर पंचायत अध्यक्ष के रूप में 4 साल का कार्यकाल सामान्य रहा , सरकार द्वारा जो थोड़ा बहुत बजट मिलता था उसका अधिकांस हिस्सा शहर भर में सेनेटाइजर का छिड़काव ,स्ट्रीट लाइटो के रखरखाव व पुराने रास्तो को ठीक करने में ख़र्च हो जाता था , जिस कारण विकास दूर की कौड़ी लग रहा था । यहां तक कि अवस्थापना विकास निधि से भी पुरोला लगभग वंचित था । किंतु येन विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन कांग्रेस विधायक राजकुमार ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था । राजकुमार के भाजपा में जाने का असर ये हुआ कि पुरोला नगर पंचायत को मुख्यमंत्री घोषणा के तहत करोड़ो रुपये की विकास योजनाओं की सौगात मिली । यद्यपि ये घोषणाएं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने किस मंच से की ये कोई नहीं जानता है । इन करोड़ो रुपये की योजनाओं ने पुरोला की हर गली व सड़क का कायाकल्प कर दिया । इन विकास योजनाओं में पुरोला में एक मल्टीस्टोरी पार्किंग के साथ दो अन्य पार्किंग भी शामिल थी । किन्तु विकास योजनाओं की बंदरबांट में भाजपा के एक धड़े की अनदेखी की वजह से इनमेसे कुछ योजनाओं को विलोपित कर दिया गया । जिसका खामियाजा कुछ ठेकेदारों को भुगतना पड़ा व उन्हें लाखो रुपये का नुकसान उठाना पड़ा । खैर इन योजनाओं का फायदा हरिमोहन को मिला । एक तरफ शहर में जनसम्पर्क करते हुए हरिमोहन का व्यवहार हमेशा शालीनता भरा रहता था किंतु नगर पंचायत परिसर में उनके विपरीत व्यवहार की हर कही चर्चा होती है जिसका उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है ।
अब बात राधे- राधे की कर लेते हैं जो विगत 40 वर्षों से पुरोला बाजार में व्यवसाय कर रहे हैं व व्यापार मंडल के प्रदेश पदाधिकारी है । पूर्व विधायक मालचंद के बहुत करीबी थे किंतु कभी भी विधायक निधि व जिला योजना का लाभ नही उठा पाये । यहां तक कि मालचंद के विधायक रहते कोई ठेकेदारी तक नही की । किन्तु विधानसभा चुनाव से पहले राजकुमार के बीजेपी में शामिल होने पर उनका स्वागत कर मालचंद को अलविदा कर दिया । उसके बाद दुर्गेश्वर लाल भाजपा प्रत्याशी बने व उनके लिए कार्य किया, यहां भी दुर्गेश्वर लाल से निधि , जिला योजना या कोई अन्य लाभ उठाया हो ऐसा सुनने में नही आया है । अब बात करे पूर्व विधायक राजेश जुवांठा की तो उनसे इनके संबंध सामान्य है । कुल मिलाकर कहे तो पुरोला के तीन पूर्व विधायक जो वर्तमान में भाजपा परिवार के अंग है उनमेसे राधे- राधे किसी के भी करीबी नही है ।यहां तक कि उनके पुरोला विधायक दुर्गेश्वर लाल से करीबी संबंध होने की अभीतक कोई जानकारी नही है । कुल मिलाकर राधे- राधे उन चुनिंदा नेताओं में से है जिनपर सांसद निधि, विधायक निधि, जिला योजना के साथ किसी भी योजना के बंदरबांट का आरोप नही है ।
अब बात करे भाजपा संगठन की तो वहां पर भी राधे- राधे का कोई करीबी नही है, जिसका सबसे बड़ी वजब राधे- राधे का ठेकेदारी न करना है । क्योंकि अगर वे ठेकेदारी करते तो अक्सर उनका इन नेताओं से मिलना होता ओर वे उन्हें अपना मानते ।
उपरोक्त बातों के मद्देनजर एक बाद फिर क्या ना चाहते हुए भाजपा राधे- राधे को टिकट देगी या फिर उनका टिकट काटकर सीट गवाने का रिस्क उठायेगी ये तो आने वाला समय ही बताएग । किन्तु ये अपने आप मे एक बड़ी विडंबना है कि जो व्यक्ति विगत चुनाव में हरिमोहन नेगी को कड़ी टक्कर दे चुका है उसका पार्टी संगठन में कोई चाहने वाला नही है ।
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