पुरोला में आखिर जन आक्रोश का शिकार सिर्फ मुस्लिम व्यापारी क्यो । ।

गजेन्द्र सिंह चौहान, पुरोला/उत्तरकाशी

गत माह पुरोला से नाबालिक लड़की के अपहरण प्रकरण से उपजे जन आक्रोश को लेकर दो सप्ताह से अधिक समय होने के बावजूद भी समुदाय विशेष के लोग अपनी दुकानों को खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं ।


जिस कारण कुछ व्यापारी दुकानें खाली कर  सामान को समेट अन्यत्र शिफ्ट कर रहे हैं। अभी तक 3 क्रोकरी,एक मोबाइल रिपेयरिंग,एक फर्नीचर्स,1 रजाई गद्दा,1आइस्क्रीम, 1सब्जी भंडार व गारमेंट्स शॉप  सहित कुल 11 दुकानदारों ने दुकानें खाली कर अपना सामान अनयन्त्र ले गये हैं । जन आक्रोश को देखते हुए रविवार को भी एक गारमेंट्स व्यापारी  सामान समेटते दिखे ।


 पुरोला में रजाई गद्दा, फर्नीचर, मोबाइल, मेकेनिक, बारबर व क्रॉकरी आदि का व्यवसाय करने वाले समुदाय विशेष की लगभग 3 दर्जन दुकानदार थे ।  विगत माह में घटित नाबालिक लड़की अपहरण प्रकरण के बाद पुरोला के साथ जनपद के विभिन्न हिस्सों में हुए धरना प्रदर्शन से सम्पूर्ण रंवाई घाटी में जनाक्रोश बढ़ते देख समुदाय विशेष के कारोबारी अपनी दुकानें बंद कर अन्य विस्थापित होने का शिलशिला जारी है जबकि स्थायी तौर पर दशकों से क्षेत्र में अपना कारोबार करने वाले कई व्यापारी यंही हैं हालांकि दुकाने उन्होंने भी अभी बंद रखी हैं। दसको पहले आकर बसे व्यापारियों का कहना है कि पुरोला उनकी जन्म व कर्मभूमि है व वे यहां की मिट्टी से उतना ही प्यार करते हैं जितना कि यहां निवास करने वाले अन्य लोग ।

जन आक्रोश का शिकार सिर्फ मुस्लिम व्यापारी क्यो 

विगत 26 मई को पुरोला में एक नाबालिग लड़की को बहला फुसलाकर भगाने की कोशिश करते दो युवकों को स्थानीय जनता ने पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया । पुलिस ने त्वरित कार्यवाही करते हुए दोनों युवकों पर मुकदमा दर्ज कर कोर्ट में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया । घटना के तीसरे दिन एक जन आक्रोश उमड़ा व तभी से मुस्लिम व्यापारियों के प्रतिष्ठान बंद है । घटना के बाद पुरोला में व्यापार कर रहे लगभग तीन दर्जन मुस्लिम व्यापारियों में से लगभग एक दर्जन व्यापारि दुकान खाली कर अनयन्त्र चले गए ।

विदित हो कि अपहरण की कोशिश में संलिप्त दो अभियुक्तों में से एक मुस्लिम व दूसरा हिन्दू समुदाय से संबंधित है । फिर जन आक्रोश सिर्फ मुस्लिम व्यापारियों के खिलाफ क्यो है । ये ऐसा प्रश्न है जिसकी तह में जाना अत्यंत आवश्यक है । स्थानीय स्तर पर कुछ मुस्लिम व्यापारियों के यहाँ रोज नित नए चेहरों को देखे जाने पर शंका व्यक्त की जाती रही है बावजूद हर कोई इसे मोन होकर देख रहा था व 26 मई की घटना से वो मौन आक्रोश के रूप में फूट पड़ा । बात अनैतिक कार्यों की हो तो ये इस कार्य मे अतीत में अन्य समुदाय के युवक व युवतियां भी संलिप्त रही व इस अनैतिक कार्यों के खिलाफ आवाज उठाने वालों को ही फंसाने की कोशिश हुई जिस कारण अनैतिक कार्यों के खिलाफ कोई भी मुखर नही हुआ । व्यापार के लिए हर दृष्टि से मुफीद पुरोला में आजादी के बाद से ही व्यापारी आते रहे व यहां की आबोहवा में बसकर यही के हो गए । ऐसे में कुछ मुस्लिम व्यापारियों ने भी यहाँ जमीन खरीदकर  अपना आशियाना बनाया । स्थानीय लोगों के साथ मुस्लिम व्यापारियों के सदैव अच्छे संबंध रहे जिस कारण यहां उनका व्यापार फलने फूलने लगा किंतु 26 मई की घटना ने सबकुछ बर्बाद कर दिया व जन आक्रोश का लाभ उठाते हुए स्थानीय नेताओं के साथ बाहरी ताकतों ने राजनीतिक लाभ के निहितार्थ मुस्लिम व्यापारियों को घरों में कैद होने को मजबूर कर दिया ।

इस बीच किसी अज्ञात संगठन ने देर सायं मुस्लिम व्यापारियों की दुकानों पर चेतावनी भरे पोस्टर चिपकाकर 15 जून तक दुकानें खाली न करने पर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी । जिसकारण दर्जनभर मुस्लिम व्यापारियों ने दुकानों को खाली कर दिया । जो व्यापारी बाहर से आये थे उन्होंने तो दुकानें खाली कर दी पर जो यहां दसको से घर बनाकर निवास कर रहे हैं वो किसी भी कीमत पर यहां से जाना नही चाहते हैं । उनका कहना है कि जन्म भूमि को त्यागना एक बड़ी त्रासदी है व उन्हें ऐसा करने को मजबूर नही किया जाना चाहिए ।

अब सवाल ये हैं कि अगर आक्रोश मुस्लिमों के खिलाफ है तो सैकड़ों मुस्लिम मजदूर हिंदुओ के भवन निर्माण कार्यो में निर्भीक होकर क्यो कार्य कर रहे हैं । सच ये है कि पुरोला में जन आक्रोश भले है पर वो हर मुसलमान के खिलाफ नही है । पुरोला में आजतक कभी भी किसी मुसलमान के साथ धार्मिक उत्पीड़न की घटना नही हुई है ये तो सिर्फ राजनीतिक निहितार्थ व उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों से आ रही लव जेहाद की घटनाओं की परिणीति है ।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ