ममता का आशियाना ।बेटा बहु ने घर से निकाला । अनाथ ने अपनाया।

  "ममता का आशियाना"




एक छोटे से कस्बे में शांति देवी नाम की एक वृद्ध महिला रहती थीं। उम्र ने उनके बालों को सफेद कर दिया था, पर चेहरे पर हमेशा एक सुकून भरी मुस्कान रहती थी। पति का साया तो बहुत पहले ही उठ गया था, और अब जीवन का सहारा थीं उनकी संतान — बेटा राजेश और बहू नीला

शांति देवी ने अपने बेटे को पालने-पोसने में कोई कमी नहीं रखी थी। खेत बेचकर उसे शहर पढ़ने भेजा, ताकि वह आगे बढ़े। मगर वक्त के साथ राजेश का दिल बड़ा नहीं हुआ, बस घर बड़ा हो गया। शहर में बसने के बाद उसने मां को अपने साथ रखा, पर धीरे-धीरे मां का कमरा "बोझ" लगने लगा।

एक दिन बहू ने कहा —
“मांजी, अब गांव लौट जाइए, यहां जगह नहीं है… बच्चे बड़े हो रहे हैं।”

शांति देवी के दिल में जैसे किसी ने छुरा घोंप दिया। बेटे की आंखों में भी मौन सहमति थी। वे बिना कुछ कहे अपना पुराना थैला उठाकर घर से निकल पड़ीं।

अब न ठिकाना था, न सहारा। सड़क किनारे बैठी थीं कि तभी एक छोटा अनाथ बच्चा उनके पास आया। नाम था आर्यन। फटे कपड़ों में, पर आंखों में उम्मीद की चमक थी। उसने बूढ़ी मां को पानी दिया और बोला,
“दादी, मेरे पास कुछ नहीं, पर आप मेरे साथ चलो… हम साथ रहेंगे।”

शांति देवी ने उस बच्चे को अपने आंचल में समेट लिया। दोनों ने पास के एक झोपड़े में नया जीवन शुरू किया। मां ने आर्यन को अपने बेटे की तरह पाला — उसे पढ़ाया, सिखाया कि “ईमानदारी सबसे बड़ी दौलत है।”

वक्त बीतता गया। आर्यन मेहनती था, होशियार भी। उसने पढ़ाई में टॉप किया और शहर में नौकरी करने चला गया। सालों की मेहनत और शांति देवी के संस्कारों ने उसे ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। कुछ ही वर्षों में आर्यन ने “आर्या ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज” नाम की बड़ी कंपनी खड़ी कर दी।

जब सफलता मिली, तो आर्यन सबसे पहले उसी झोपड़ी में लौटा जहां उसकी दादी मां रहती थीं। उसने उनके चरण छूकर कहा —
“आपने मुझे अनाथ नहीं रहने दिया दादी, आज जो भी हूं, आपकी ममता की वजह से हूं।”

मीडिया वाले इस प्रेरक कहानी को "ममता का चमत्कार" कहने लगे। उसी दिन आर्यन ने एक “ओल्ड एज होम” खोला, जिसका नाम रखा — “ममता आश्रय” — ताकि कोई और मां सड़कों पर बेघर न हो।

और उधर, एक दिन वही बेटा राजेश और बहू नीला भी उसी शहर में नौकरी की तलाश में आए। उन्हें नहीं पता था कि जिस कंपनी में इंटरव्यू देने जा रहे हैं, उसका मालिक वही अनाथ बच्चा है, जिसने उनकी मां को सहारा दिया था।

इंटरव्यू के दौरान आर्यन ने दोनों को देखा, चुपचाप कहा —
“आप दोनों ने उस मां को छोड़ा, जिसने आपको जन्म दिया था… लेकिन मैं उसे कभी नहीं छोड़ूंगा।”

राजेश की आंखें नम हो गईं। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, मगर बहुत देर हो चुकी थी।

शांति देवी ने कहा —
“बेटा, माफ करना ही सबसे बड़ी जीत है।”

और मां ने दोनों को गले लगा लिया।

समाप्त।

👉 यह कहानी सिर्फ एक मां की नहीं, बल्कि उस ममता की है जो कभी खत्म नहीं होती। और यह याद दिलाती है कि खून का रिश्ता जरूरी नहीं — सच्चा रिश्ता दिल से बनता है। ❤️



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