गजेन्द्र सिंह चौहान पुरोला
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी नियत तिथि पर आयोजित होने जा रहे देवलांग महापर्व को लेकर रंवाई घाटी के रामा सेराई, कमल सेराई व बनाल पट्टी में खूब हर्षोल्लास है । देवलांग महापर्व क्षेत्र के आराध्य देव राजा रघुनाथ के थान गैर बनाल के प्रांगण में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ सदियों से मनाया जा रहा ।
देवलांग महापर्व को लेकर लोक कलाकार सुंदर प्रेमी, रेशमा शाह व अनिल राणा ने हारुल के माध्यम से बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है । इनकी अमर कृतियों को हजारों लोग प्रतिदिन श्रवण कर धन्य होते हैं ।
जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण ने रंवाई घाटी के पवित्र त्यौहार देवलांग पर समस्त क्षेत्रवासियों को शुभकामनाएं प्रेषित की । उन्होंने कहा कि देवलांग हमारी लोक संस्कृति व समृद्ध गौरवशाली इतिहास का प्रतीक त्यौहार है । उन्होंने कहा कि देवलांग महापर्व की पृष्ठभूमि में यहां के गौरवशाली इतिहास पर तार्किक शोध की आवश्यकता है जिससे युवा पीढ़ी हजारों वर्षों से चली आ रही परम्पराओ के रहस्यों से परिचित हो सके ।
वर्षी से चली आ रही धारणा के उलट है नमोन्यूज कि विवेचना
नमोन्यूज हमेशा से रंवाई की समृद्ध संस्कृति व गौरवशाली इतिहास की गलत व्यख्यो को लेकर जागरूकता चलाने के लिए प्रतिवद्ध रहा है । कुछ आधुनिक विद्ववानों ने देवलांग महापर्व के साथ रंवाई घाटी, जौनपुर व जौनसार में बग्वाल महापर्व को मंगसिर महीने की अमावस्या के दिन मनाए जाने को लेकर विभिन्न कहानियां गढ़ी है , जिनसे नमोन्यूज सहमत नही है । इनके द्वारा रची कहानियों व किस्सों पर यकीन इसलिए नही किया जा सकता क्योंकि ये वही लोग है जो महाभारत से संबंधित पांडवों की श्राद्ध को पांडव नृत्य कहते व लिखते हैं । पांडवों का अवतार या श्राद्ध इस क्षेत्र के जनमानस से जुड़ा हुआ पवित्र बंधन है , जिसे ये विद्धवान नृत्य कहकर यहां की समृद्ध व गौरवशाली संस्कृति व इतिहास को अपमानित करते हैं ।
कुछ विद्ववानों ने आम जनमानस के दिमाग मे ये धारणा बैठा दी कि भगवान श्रीराम जब वनवास से अयोध्या वापस आये तो उनके स्वागत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ दीपावली मनाई गई । किंतु रंवाई , जौनपुर व जौनसार में उक्त खबर लेट पहुंची जिसकारण यहां एक महीने बाद दीपावली का त्योहार मनाया गया । नमोन्यूज इस तर्क से सहमत नहीं है क्योंकि देश मे तमाम दुर्गम इलाके है व केवल इस छोटे से क्षेत्र में सूचना देरी से पहुंची इससे सहमत होने का सवाल ही नही है ।
एक अन्य तर्क के समर्थक विद्ववानों का तर्क है कि गढ़वाल की सेना युद्धरत होने की वजह से जनता दीपावली का त्यौहार नही मनाया था व दीपावली के ग्यारहवें दिन जब सेना विजय होकर आई तो जीत की खुसी में दीपावली मनाई गई जिसे इग्यास के रूप में मनाया जाता है । यहाँ भी रंवाई जौनपुर में सूचना देरी से पहुंची व एक महीने बाद दीपावली मनाई गई । नमोन्यूज इस तर्क को भी सिरे से खारिज करती है ।
देवलांग व बग्वाल एक ही दिन मनाए जाने वाले अलग अलग रीति रिवाज व संस्कृति के प्रतीक त्यौहार ।
दीपावली के एक महीने बाद मनाया जाने वाला देवलांग महापर्व क्षेत्र के इष्टदेव राजा रघुनाथ के मंदिर प्रांगण में मनाया जाने वाला पवित्र त्योहार है । देवलांग का अर्थ है देवता की लांग । लांग का अर्थ काटकर लाये गये लंबे व पतले वृक्ष से होता है जिसके अन्य उपयोग भी है । तात्पर्य है कि ऐसी लांग जो देवता के नामपर समर्पित है उसे देवलांग की संज्ञा दी गई है ।
वही बग्वाल का त्यौहार भी मंगसिर महीने की अमावस्या को यहाँ लोग सदियों से मनाते आये हैं व बग्वाल को कभी भी दीपावली की संज्ञा नही दी गई । अतीत में इस पर्व के दिन लक्ष्मी पूजा का कभी भी चलन रंवाई, जौनपुर व जौनसार में नही रहा है । ना ही यहाँ बग्वाल व देवलांग महापर्व पर घरों में दीप प्रज्वलन की कोई परंपरा रही है । नमोन्यूज कि विवेचना से साफ जाहिर है कि देवलांग महापर्व व बग्वाल का त्यौहार दीपावली के स्थान पर नही मनाए जाते हैं ।
नमोन्यूज की देवलांग महापर्व व बग्वाल के त्यौहार को मनाने को लेकर तार्किक विवेचना अगले अंक में जारी रहेगी । सम्मानित पाठकों के सुझावों का सदैव स्वागत है । आम हमे newsnamo8@gmail.com पर मेल कर सकते हैं या 8630760166 पर व्हाट्सएप भी कर सकते हैं ।
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